Saturday, September 5, 2009

BJP and its internal convulsion

भाजपा को एक अनुशासित पार्टी माना जाता था. भाजपा एक काडर वाली पार्टी
है-ऐसा कहा जाता है. असल में भाजपा में कभी कोई काडर बना ही नहीं.
राजनीतिक रूप से भाजपा ने कभी काडर नहीं बनाये, जैसे कम्युनिस्ट पार्टी
में होते हैं. आर एस एस के कार्यकर्ताओं को भाजपा का काडर कहा गया. आर एस
एस के कार्यकर्ता निश्चित रूप से आर एस एस के सिद्धांतों को मानते हैं.
आर एस एस के सिद्धांत मुख्य रूप से हिंदूवादी हैं. भाजपा आर एस एस का
राजनीतिक मुखौटा था और है भी. अब क्योंकि आर एस एस और भाजपा में आतंरिक
सम्बन्ध इतने गहरे थे और हैं भी कि कहा जाने लगा कि भाजपा एक काडर वाली
पार्टी है. यह सब तब तक बहुत मधुर लगता था जब तक भाजपा को राजनीतिक
सुख-भोग का चस्का नहीं लगा था. सत्ता के करीब पहुँचने के बाद ही इन्हें
लगा कि क्या और चाहिए लगातार सत्ता में बने रहने के लिए. इसके लिए तमाम
मोर्चे बनाये गए. एन डी ए बना. अब समस्या यह हुई कि अन्य घटक दल
अपने-अपने क्षेत्रीय कारणों से भाजपा के संघीय सिद्धांतों से सहमत नहीं
हो सकते थे. इसलिए कभी वाजपेयी के उदार चेहरे का सहारा लिया गया तो कभी
अडवानी अपना चेहरा उदार बनाने में लग गए. चेहरा उदार बनाने के चक्कर में
उनका जो असली चेहरा था वह भी कहीं उतरता हुआ लगा. कहने का मतलब है कि
एकबार सत्ता से उतरने के बाद दुबारा सत्ता में पहुँचने की कवायद में एक
झमेला शुरू हुआ जो आज जसवंत सिंह के रूप में सामने है. सुधीन्द्र
कुलकर्णी भी उदार चेहरे के लिए शुरू हुए श्रम का एक मजबूत हिस्सा थे

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